रायपुर
हरिद्वार के श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरी ने कहा है कि रामचरितमानस किसी जाति विशेष का ग्रंथ नहीं है। इसमें दिए गए संदेश लोक हितार्थ एवं सभी मानव जाति के कल्याण के लिए हैं। कुछ नासमझ लोगों ने इसकी प्रतियां जलाकर मूर्खता की है। ठीक, वैसी ही मूर्खता जैसी लंकापति रावण ने हनुमान की पूंछ जलाकर की थी। हनुमान की पूंछ तो जली नहीं लेकिन लंका का सर्वनाश हो गया।
उन्होंने कहा कि जो राम को नहीं मानते, वे मानव ही नहीं हैं। मानस में सनातनी संस्कृति का समावेश है।
एक निजी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राजधानी पहुंचे स्वामी यतींद्रानंद गिरी समसामयिक मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति में वेद ग्रंथ सर्वोपरि है क्योंकि वे मानवता का संदेश देते हैं। जो लोग धर्म ग्रंथों का विरोध करते हैं, वे राष्ट्रभक्त कदापि नहीं हो सकते। देश में जो भी राम का अनादर, अपमान करते हैं, उन्हें प्रभु राम उसका फल अवश्य देते हैं। देश का उत्थान हिंदू जीवन मूल्यों और आदर्शों का पालन करने से ही हो सकता है।
मतांतरण पर आपराधिक कानून बने
एक सवाल के जवाब में स्वामी यतींद्रानंद गिरी ने कहा कि एक समुदाय से जुड़े लोग देशभर में भोले-भाले जनजाति के लोगों को भ्रमित करके मतांतरण करा रहे हैंं। ऐसे मतांतरित लोगों की जब मूल सनातन धर्म में वापसी होती है तब मतांतरण करवाने वाले पाखंडी षड्यंत्र रचकर हिंदू धर्म के संत, महात्माओं को बदनाम करते हैं। प्रत्येक राज्य और देश में मतांतरण के खिलाफ आपराधिक कानून बनाया जाना चाहिए।
शालिग्राम पत्थर नहीं प्रत्यक्ष भगवान
स्वामी जी ने कहा कि शालिग्राम से भगवान श्रीराम की प्रतिमा गढ़ा जाना कोई गलत नहीं है। जिस तरह नर्मदा नहीं का हर पत्थर भगवान शंकर का स्वरूप है, वैसे ही दंडकी नदी में प्रत्यक्ष शालिग्राम रूपी भगवान आयुध हैं। बद्रीनाथ धाम समेत अनेक मंदिरों में भगवान की प्रतिमा शालिग्राम पत्थर से बनी है। इसका विरोध नहीं होना चाहिए।
साधु-संतोंं पर सवाल क्यों
अंधविश्वास के सवाल पर स्वामी जी ने कहा कि पाखंडी लोग केवल साधु-संतों पर सवाल उठाते हैं कि अंधविश्वास फैला रहे हैं, जबकि आए दिन कुछ समाज के लोग अंधविश्वास फैलाते हैं। उनके खिलाफ कोई आवाज क्यों नहीं उठाता? सनातन धर्म, विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है।