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मौद्रिक नीति : रेपो रेट 0.25 फीसदी बढ़ने का अनुमान, फेड के फैसले से बढ़ा दबाव

 नई दिल्ली 
रिजर्व बैंक की ओर से रोपो दर में अभी राहत की उम्मीद नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस सप्ताह अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में केंद्रीय बैंक रेपो दर में 0.25 फीसदी की मामूली वृद्धि कर सकता है। आरबीआई की दर निर्धारण करने वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) सोमवार को तीन दिन के विचार-विमर्श की शुरुआत करेगी।

एमपीसी का निर्णय आठ फरवरी को सुनाया जाएगा। आरबीआई ने दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में प्रमुख ब्याज दर को 0.35 फीसदी बढ़ा दिया था। इससे पहले लगातार तीन बार इसमें 0.5-0.5 फीसदी की वृद्धि की गई थी। आरबीआई ने पिछले साल मई से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए रेपो दर में कुल 2.25 फीसदी की वृद्धि की है। यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला में आए व्यवधान के चलते करनी पड़ी। आरबीआई ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर आने वाले दिनों में कुछ हद तक उदार रुख अपना सकता है। खुदरा मुद्रास्फीति में नरमी के संकेत दिखने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा अपनी प्रमुख ब्याज दर में बढ़ोतरी की गति को धीमा करने से ऐसे संकेत मिल रहे हैं।

आगे नरम रुख की उम्मीद

कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज ने एक रिपोर्ट में कहा कि वैश्विक मुद्रास्फीति में नरमी आ रही है, हालांकि महंगाई दर अब भी प्रत्येक केंद्रीय बैंक के लक्ष्य से काफी ऊपर है। रिपोर्ट के मुताबिक, अगले कुछ महीनों में मुद्रास्फीति में और नरमी आने की संभावना है। इसके साथ ही 2023 की पहली छमाही तक दर वृद्धि का दौर खत्म हो जाएगा। इसके बाद 2023 के अंत या 2024 की शुरुआत में दरों में कटौती शुरू हो सकती है।

फेड के फैसले से बढ़ा दबाव

पिछले हफ्ते अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने रोपो दर में 0.25 फीसदी की वृद्धि की जिससे आरबीआई पर भी पर भी दरों में वृद्धि का दबाव बढ़ गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके अलावा वैश्विक आर्थिक परिदृश्य का नकारात्मक रुख अब भी जारी है, लेकिन घरेलू अर्थव्यवस्था में तेजी और जुझारूपन दिखाई दे रहा है। ऐसे में आगामी समीक्षा में नीतिगत दर में वृद्धि का अनुमान है।

महंगाई पर भी गौर करेगा आरबीआई

आरबीआई मौद्रिक नीति में खुदरा महंगाई पर गौर करता है। सरकार ने आरबीआई को मुद्रास्फीति को छह फीसदी (दो फीसदी ऊपर या नीचे) के स्तर पर रखने की जिम्मेदारी दी हुई है। महंगाई दर जनवरी, 2022 से तीन तिमाहियों तक लगातार छह फीसदी से ऊपर बनी रही। इसमें नवंबर और दिसंबर, 2022 में कुछ राहत मिली।
 

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